उसने फिर मुझको इक किताब दी है !
बाद मुद्दत के हुस्न -ए -शराब दी है !!
अबकी मिल कर है उससे पूछना ये !
क्यूँ रुख-ए -जमाल को नक़ाब दी है !!
कर भी दो हुस्न को बरी वफ़ा से तुम !
इश्क ने ख़ुदा से आज फ़रियाद दी है !!
हुस्नपरी के मानिंद नहीं कोई "तन्हा" !
ये किसने सरे - राह यूँ आवाज़ दी है !!
- " तन्हा " !!
25-03-2014
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