Tuesday 21 October 2014
Friday 10 January 2014
चकोर की याद में है उदास चाँद भी !!!!
उम्र के 28 वे पायदान पर 1995 में डियर पार्क (
R.K.PURAM ) दिल्ली
में लिखी इक ग़ज़ल As It Is
.......
पहले एक शेर ....
चकोर की याद में है उदास चाँद भी !
मुफ़लिसी में फॅसा आज का इंसां भी !!
रक़ीबों की सोहबत का ये सिला है मिला !
थामे से थमा नहीं दौर -ऐ-तूफ़ान भी !!
...... ......
परिन्दे की परवाज़ का आग़ाज़ भी अंज़ाम भी !
असीरी में सय्याद के जान भी जहान भी !!
बाग़-ओ-ग़ुल के ख्वाब में दिल भी ईमान भी !
गिरफ्त में ज़ंज़ीरों की हसरत -ए-परवान भी
!!
बाँजुओं में था कभी फ़लक भी उन्वान भी !
मुश्क़िलों में फँसी जान भी पहचान भी !!
रिहाई का तक़ाज़ा है दुश्वार भी आसां भी !
क़दम बा क़दम मिले राह भी बियावाँ भी !!
सीमतन के हाथों में तीर भी कमान भी !
क़त्ल करने को मुझे हुक्म भी फ़र्मान भी !!
सरकशी का सरंजाम सुब्हो भी शाम भी !
कल्म कर दो मेरा इल्म भी जुबान भी !!
रोता है ऐयारी पे अर्श भी असमान भी !
सलाख़ों में दफ्न है तन्हा-ऐ-एहसान भी !!
- " तन्हा " चारू !!
25-02-1995
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
Wednesday 8 January 2014
तूफाँ से आती है तपिश-ए-आब की झलक !
तूफाँ से आती है तपिश-ए-आब की झलक !
देती है ख्वाहिश पेंच-ओ--ताब की झलक !!
उलट दे सऱे - राह वो नक़ाब ऐ सबा !
दिखला दे फिर मुझे माहताब की झलक !!
फ़िर देखूँगा मोजिज़ तेरे इस कमाल को !
देखो अभी रंगीनिये -शबाब की झलक !!
पेशानी पे होता सुर्ख वो दाग़ -ए -बोसा मेरा
!
किस क़दर है ज़ाहिर तेरे इताब की झलक !!
खुशग़वार फ़िज़ा धुंधलकी शाम शबे स्याह !
हर पहर है तेरे इज्तिराब की झलक !!
अब्र उठा ;जाम उठा ; मस्त हो ;सलाम कर !
हो नुमायां बज़्म में आलमताब की झलक !!
कैफ़-ए-कलाम-ए-"तन्हा" है मर्हलों
के पार !
आती है इसमें बू-ए -इन्क़िलाब की झलक !!
- " तन्हा
" चारू !!
08-02-1997
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
तपिश = गर्मी ; आकुलता ;
बेक़रारी
आब =
पानी
पेंच =
उलझाव ; घुमाव
ताब = ताप,
शक्ति,
धीरज,
क्रोध
माहताब =
चाँद
मोजिज़ =
चमत्कार दिखाने वाला ; जादूगर ;
खुदा
रंगीनिये–शबाब = हुस्न ; सौन्दर्य
पेशानी =
माथा ; ललाट
दाग़ =
निशान, घाव का चिन्ह, कलंक, दोष, विपदा,
हानि
बोसा =
चुम्बन
इताब = क्रोध, अप्रसन्नता,
डाँट,
दोष
लगाना
इज़्तिराब = अशान्ति, चिन्ता, घबराहट,
बेचैनी
बज़्म
= सभा, टोली (महफ़िल )
आलमताब = सबको रोशन करने वाला ; खुदा !
आलमताब = सबको रोशन करने वाला ; खुदा !
कैफ़ = आनंद ; नशा
कलाम =
रचना ; कविता
मर्हलों = गंतव्य ; आखरी स्थान
बू-ए–इन्क़िलाब= आजादी की
महक ; क्रान्ति
Tuesday 7 January 2014
बोलो न ; कब आओगे ? अब तुम ; कब आओगे ????
इक पुरानी डायरी में दफ्न 21-22 साल पहले (
1992 -93 = ज़म्मू ) में लिखी गई
एक कविता ………
बोलो न ; कब आओगे ?
जब ;
सुरमई शाम , अपने सुर्ख व रेशमी , आँचल पर !
दूर झिलमिलाते , सितारों को , टाँक रही होगी !
जब ;
शीतल , मन्द ,
पागल पवन पुरवाई ,
उस आँचल को --
छू कर , हिला कर ,
लहरा कर , गिरा कर
सारे जहाँ को ;
मद मस्त बना रही होगी !
तब ;
तुम आओगे न ??? बोलो न !
बोलो न ; कब आओगे ?
तब - जब ;
ढल चुकी रात , और अन्धियारी ,
होती जा रही होगी !
चूर - चूर हो कर ; बिखरे सपनों की
एक और ; गहरी सी पर्त ,
उस पर छा रही होगी !
तब - जब ;
उस टूटन की चुभन ,
यक़ीनन , मेरे चेहरे पर ,
आ रही होगी !
मेरे ;
टीसते - रिसते जख्मों पर ,
हल्की सी पड़ी पपड़ी
को भी दरका रही होगी !
तब - जब ;
तुम्हारी याद , तुम्हारा प्यार ;
मलहम सा बन कर
उस नासूर को अपने
दामन में छिपा कर
उस अँधेरे में आशा की ;
चन्द्र किरण दिखा कर !
हर पल - हर छड़ ;
मुझे ,
उस भँवर से निकाल कर
मेरा आधार बन रहा होगा !
मेरा सम्बल बन चुका होगा !!
तब ;
तुम आओगे न ???
बोलो न !
बोलो न ; कब आओगे ?
या शायद तब ;
हाँ तब ;
जब ,
एक और सुबह मेरा ; इन्तज़ार कर रही होगी !
जब ;
हर घड़ी एक नया ; इसरार कर रही होगी !
जब ;
मुझ पर बीती हर बात मुझे ; बेक़रार कर रही होगी !
तब ; हाँ तब ;
उस सुर्ख व रेशमी ; आँचल को ,
उस दहकती सी चूड़ियों कि ; छनछनाहट को ,
उस काली पड़ चुकी ; मेहँदी को ,
मुझे ;
पहनाने ; सुनने ; देखने !
तुम तो आओगे न ?
मेरे आँखों से गिरते ; हर मोती को ,
मेरे डगमगाते से ; हर क़दम को ,
मेरे पीछे रह गई ; हर याद को ,
तुम ;
समेटने ; सम्हालने ; बिसराने !
तुम तो आओगे न ?
बोलो न !
बोलो न ; कब आओगे ?
अब तुम ; कब आओगे ????
- " तन्हा " चारू !!
1992 - 93 ( ज़म्मू )
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज कुमार खरे "
तन्हा " चारू !!-
Friday 3 January 2014
ज़िंदगी फिर आज ख़ुद को दोहराती है !
ज़िंदगी फिर आज ख़ुद को दोहराती है !
मेरी ज़बीं पर इमां का घर बनाती है !!
तेरे एहसास को खुशबू सा सहेजा था !
हवायें रोज़ जिसको बिख़ेर जाती हैं !!
किस क़दर है तुझे प्यार मुझसे "तन्हा"!
हथेलियों की हिना याद तो दिलाती है !!
तेरे माथे की बिंदिया ओ कंगना पायल !
मेरा सुकूँ भी हया के साथ लिये जाती है
!!
जिंदगी ! तेरे झूठे वादे पर ऐतबार कर !
मौत भी मुझसे मिलना टाल जाती है !!
तुम भी हो किस मिट्टी के साज़ "तन्हा"!
जिन्दगी न जिस पे कभी गुनगुनाती है !!
--
" तन्हा " चारू !!
02-01-2014
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
Thursday 2 January 2014
कल्म किया क्यूँ सर मेरा इसका अफ़सोस नहीं !
कैसा तीर फिर मेरे इस ज़िगर के पार गया !
दर्द उठा अश्क बहे या'नी जाँ का आज़ार गया !!
कल्म किया क्यूँ सर मेरा इसका अफ़सोस नहीं
!
हाय ! मेरा वो नन्हा दिल मसला कई बार गया
!!
बदसलूकी आज़माने उसकी बज्म ओ महफ़िल में !
जो गया इक बार गया मैं वहाँ हर बार गया
!!
तंज कसे तेग़ खींचा सलीब पे "तन्हा
"झूल गया !
देखो किस-किस ज़ानिब मैं अपनी जां वार गया
!!
-
" तन्हा " चारू !!
06-02-1997
सर्वाधिकार
सुरक्षित ©
अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
Wednesday 1 January 2014
अधूरी दास्ताँ ....... !!!!
अधूरी दास्ताँ ....... !!!!
जब ;
सुबह का सूरज ,
बर-बस
अपने आगमन की
दस्तक़ दे रहा होगा !
अपनी लालिमा को , अपने
दोनों हाथों से समेट कर
मेरे लजाये चेहरे पर
मलने की पुरकोश
कोशिश कर रहा होगा !
जब ;
उसकी हल्की , गुनगुनी गर्मीं
तुम्हारे हाथों के स्पन्दन सी
मेरे माथे पर
मेरे चेहरे पर
मेरे होठों पर
इक मधुर चुम्बन सी
अंकित हो रही होगी !
मैं ;
तुम्हारे ख्यालों में
डूबती - उतरती
उन विचारों की सुनहली नदी में
अपने जीवन की
कश्ती को
तुम्हारी हथेली की
चन्द रेखाओं में
उतार कर
तुम्हारे विश्वास को अपना
मांझी व पतवार ; बना कर !
मैं निश्चिन्त हो जाऊँगी !
फिर ;
तुम्हारे संकल्प के
सीने में अपना ; मुख छिपा कर !
अपने नर्म व नाज़ुक
जज्बातों से तुम्हे
सहला कर !
धीरे से ;
तुझे उस नींद से
उठा कर
अपनी अधूरी दास्ताँ सुनाऊँगी !
और ख़ुद ;
तुम्हारे आग़ोश में
समा कर !
बेफ़िक्र हो
खो जाऊँगी ; सो जाऊँगी !!
n
" तन्हा " चारू
!!
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