जाने क्या कुछ
सोच के,
कान्धों पे मेरे
रो गया
!
इक बादल का
टुकड़ा जब,
छत को उसकी
भिगो गया
!!
खार जुबाँ पर
उग आये
थे ,
तलवों में भी
आब था
!
वो अश्कों का
रेला जब
,
नाम उसका डुबो
गया !!
काटी रातें आँखों
में थी
,
ख्वाब भी देखे
ख्वाबों के
!
ले के इक
करवट मौसम
,
जब पहलू में
सो गया !!
जश्न मनाया मैंने
भी था
,
खोली बोतल ख़ुम
की थी
,
"तन्हा" उस भीड़
में जब
,
अपना भी साया
खो गया
!!
-
" तन्हा
" चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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