आई है नज़र
छू कर
किसी शोख़
नज़र को
!
छिपायें कहाँ अपनी
मद - होश
नज़र को
!!
कुर्बान है नज़र
उनकी नीची
नज़र पे
!
लगे न नज़र
उनकी पुर
ज़ोश नज़र
को !!
आईं हैं नज़र
मुझको क़यामत
की शोख़ियाँ
!
लिल्लाह न उन्हें
देख सके
एक नज़र
को !!
कह न सके
नज़र से
भी नज़र
की ही
बात !
"तन्हा"नज़र ढूँढ
रहीं ख़ामोश
नज़र
को !!
-
" तन्हा " चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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