आब मिला के
ज़ाम में
ज़ाम को
बदनाम किया
!!
बेसुध हो के
मैंने भी
बज़मे -बोसा
ले लिया
!
देख़ो तो मैंने
कितना तेरा
एहतराम किया
!!
दिया सबको तुमने
भर - भर
आब-ऐ-जम -जम
!
दौर मुझ तक
आते-आते
सागर क्यूँ
थाम लिया
!!
ख़ता हुई मुझसे
कैसी जो
इतने ख़फ़ा
हो गये !
ज़ाम उलट के
मेरा फिर
क्यूँ पलट
सलाम किया
!!
हम "तन्हा"रिन्दों
की ख्वाहिश
पूछी साक़ी
ने
!
लो हमने यह
जाम भी
साक़ी तेरे
नाम किया !!
-
" तन्हा
" चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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