जिसने बिकता बाज़ार में इन्सान देखा !!
शर्म ;अदब ;गैरत ;मिले बा - ख़ुलूस कहीं !
हो कर मैंने कुछ उनको पशेमान देखा !!
गाँधी ;बुद्ध ही नहीं ईसा ; ख़ुदा ओ राम भी !
घर -घर सज़ा हुआ मैंने ये सामान देखा !!
बिकता फ़रेब ओ झूठ याँ साज़िल्दे हुनर !
दर ओ दीवार पे चस्पा ये दास्तांन देखा !!
मत पूछ कैसे रु- ब -रु ऐ गद्दारे - वतन !
हो दुजानु अक्सरीयत को बे-ज़ुबान देखा !!
बे-खौफ़ जाते थे जिन पे संग ले अहबाब को !
हो दहशतज़दा इन्सान राह -ऐ -वीरान देखा !!
उलट जायेगा इक रोज़ जहाँ का चलन !
उलटी रोशनाई में दर्ज़ हर्फ़े बयान देखा !!
हो जैसे संगे-तुर्बत पे रौशन शम्मे-मज़ार !
मैंने भी " तन्हा "जैसा नूर-ऐ-इंसान देखा !!
- " तन्हा " चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज कुमार खरे " तन्हा " चारू !!
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