कितना वक़्त ज़ाया
किया मुझे
आज़माने में
!
चले आते मुझे
पूछते सीधे
मयख़ाने
में !!
किसको कहते हैं
बुरा चखना
तो सबाब
है !
वर्ना मयस्सर है
कहाँ इतनी
ज़माने
में !!
मन्दिर,मज्जिद,क़ाबा,हज़ सब
करके छोड़
दिया !
संगम का हूँ
पानी रखता
अब तो
पैमाने में !!
पत्थऱ को सर
नवाया घिसा
माथा दहलीज़
पे !
मिले मुझे ख़ुदा
ओ राम
"तन्हा" बुतखाने में
!!
-
" तन्हा " चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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