उठता है धुँआ
कैसा मेरे
सीने में
!
फ़िर लग गई
नज़र मेरे
पीने में
!!
गर ख़ुदा है
साथ तो
डरना कैसा
!
चलो बैठ के
पियेंगे हम
मदीने में
!!
लाता न हो पैग़ाम वो
शैख़ कहीँ
!
तर-ब-तर है ज़िस्म
फिर पसीने
में !!
इलाही ! डगमगाती है
ये कश्ती
क्यूँ !
क्या जल्वागर हो
गए वो
सफ़ीने में
!!
लाता है साक़ी
भर आब-ऐ-जम-जम !
उठो ! दौड़ो ! रक्खो
! प्याले क़रीने
में !!
बा-रहम "तन्हा"
दे दे
इक जाम
और !
बुझा लूँ आग
मुददत की
लगी सीने
में !!
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" तन्हा
" चारू !!
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सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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