ग़मों से भी कुछ अपना साथ
पुराना निकला
!
निकला इक तेरा
नाम लाख
फ़साना निकला
!!
थी मासूम मेरी
ज़िद उस
चाँद को
पाने की !
बहलाने को मुझे
ही सारा
ज़माना निकला !!
मिलती हैं खुशियाँ
यूँ तार
- तार दामन
को !
जैसे डूब सागर
में टूटा
पैमाना निकला !!
ज़मीं ओ कूँ
-ए -यार
भी होते
हैं रौशन !
जब उसके नाम
को छेड़
तराना निकला
!!
निकलना ख़ुल्द से
आदम का
सुना था !
कान्धों पे सवार
"तन्हा" दीवाना निकला
!!
-
" तन्हा " चारू !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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