देखो यारो ! अंजुमन
में कौन
बारहां रोता
है !
सुनके जिसको जिस्म
पसीने दिल
पत्थर का
होता है
!!
तसल्लियों से रखूँ नाता इतना मुझको
होश कहाँ
!
देख के तेरा
ख़ाली दामन
चारोँ पहर
दिल रोता
है !!
किस रंजिश से
पूंछूं जा
कर सबब
उसके जख्मों
का !
रंजिश की शह
को पाकर
कुछ दर्द
जवाँ तो
होता है !!
गमनीन मोहब्बत में
होना धीरे
से हॅसना
फिर रोना
!
ऐसे हादसे देख
- देख के
अपना हौसला
खोता है !!
तेरे लबों को
छू कर
देखूँ मैं
अपनी इन
आँखों से !
देखो " तन्हा "ख्वाब
सुहाने अश्कों
में डुबोता
है !!
- " तन्हा " चारू
!!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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