भर आती है
आँख क्यूँ
मुस्कराने के बाद !
क्या तुमने किया
है याद
मुझे जाने
के बाद
!!
पहरों सुनाता रहा
उसे मैं
दास्ताँ अपनी !
हँस के चल
दिये वो
जी भर
सताने के
बाद !!
कर रहा हूँ
मै कोशिश
यकीन दिलाने
की !
कि उठ कर
गए हो
तुम यहाँ
आने के
बाद !!
हाय !मेरे हाथों
के नाख़ून
क्यूँ न
और बढ़े
!
कुरेदता जख्म मैं
भी हरे
हो जाने
के बाद !!
कहने लगे वो
मुझसे एक
रोज़ ऐ
" तन्हा "!
फिर मिलेंगे हम
कभी मर
जाने के
बाद
!!
रख लो अपने
पास तुम
आइना-ए-दिल मेरा
!
लगा लेना दीवार
पे कहीं
दिल लगाने
के बाद
!!
सुनते है कि
आएगी रंगीनियाँ
घर हमारे !
देखता हूँ सूनी
दीवारे रोज़
घर आने
के बाद
!!
आयेंगे ज़रूर हम
फिर तेरी
महफ़िल में !
गर आने दिया
ख़ुदा ने
यहाँ से
जाने
के बाद !!
इन्सान की बस्ती
है ठोकर
तो मिलेगी
ही !
सहेज़ लेना ये
भी फ़रेब
ओ झूठ
खाने के
बाद !!
लिल्लाह मेरे हाथों
में इक
लक़ीर और
होती !
तो होता मैं
ख़ुदा इंसान
न बन
पाने के
बाद
!!
मैं भी आऊ
इबादत में
है ख्वाहिश
" तन्हा "!
गर हो मस्ज़िद
कहीं
मयख़ाने के बाद !!
सर्वाधिकार सुरक्षित © अम्बुज
कुमार खरे " तन्हा
" चारू !!
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